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{{KKRachna
|रचनाकार=द्रागन द्रागोयलोविच
|अनुवादक=रति सक्सेना
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<poem>
दिल की कितनी भी गहराई में
चाहे यह पीड़ा पैठे, अतल में पैठे
चीत्कार चाहे कितनी भी तीव्र हो
कमज़ोर हो ही जाएगी,अगले दिन

आन्तरिक प्रलाप का
प्रसव और अन्त
अपने आप को सम्भालो
हम लोग दुख से पत्थर बन जाएँ

'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : रति सक्सेना'''
</poem>
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