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तक़रीबन आसमान के भीतर से / पाब्लो नेरूदा / अशोक पाण्डे
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10:43, 30 अक्टूबर 2022
क्यों छूते हो उस लड़की को ?
क्यों उदास उसे बनाते हो ?
उफ़ ! उस रात पर चलना, जो हर चीज़ से दूर ले जाती है
बिना वेदना, बिना मृत्यु के, प्रतीक्षारत सर्दियाँ
ओस से खुली अपनी आँखों समेत
।
—
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : अशोक पाण्डे'''
</poem>
अनिल जनविजय
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