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तक़रीबन आसमान के भीतर से / पाब्लो नेरूदा / अशोक पाण्डे

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तक़रीबन आसमान के भीतर से, चन्द्रमा का आधा
ठहर जाता है दो पहाड़ों के दरम्यान,
घूमती हुई आवारा रात, आँखों को खोदने वाली ।
ज़रा देखें तो कितने सितारे चकनाचूर हुए तालाब में,

वह मेरी आँखों के बीच शोक की एक सलीब बनाता है और
दूर चला जाता है,
नीली धातुओं की भट्ठी, ठहरे संघर्षों की रातें
मेरा हृदय घूमता है पगलाए पहिए जैसा ।

लड़की तुम जो आई हो इतनी दूर से, लाई गई हो इतनी दूर से
कभी - कभी तुम्हारी निगाह कौंधती है आसमान के नीचे
गड़गड़ाता तूफ़ान, क्रोध का चक्रवात
तुम गुज़रती हो मेरे दिल के ऊपर से बिना थमे
 
क़ब्रों से आई हवा तुम्हारी उनीदी जड़ों को उड़ा ले जाती है
तोड़कर बिखेर देती है उन्हें,
उसके दूसरी तरफ़ — विशाल वृक्ष, उखड़े हुए,

लेकिन तुम, ओ मेघहीन लड़की ! धुएँ के सवाल, मकई की बाली
रात के पर्वतों के पीछे, आग की सफ़ेद लिली
आह ! मैं कुछ नहीं कह सकता ! तुम हरेक चीज़ से बनी हुई थी ।

इच्छा, जिसने टुकड़ों में काट दिया मेरी छाती को,
समय आ गया है दूसरी राह पकड़ी जाए, जिसपर वह मुस्कराई नहीं थी
तूफ़ान, जिसने घण्टियों को दफ़नाया, यातनाओं के कीचभरे घेरे,

क्यों छूते हो उस लड़की को ?
क्यों उदास उसे बनाते हो ?
उफ़ ! उस रात पर चलना, जो हर चीज़ से दूर ले जाती है
बिना वेदना, बिना मृत्यु के, प्रतीक्षारत सर्दियाँ
ओस से खुली अपनी आँखों समेत ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : अशोक पाण्डे