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<poem>
आप जिसे दर्पण समझते हैं,
वह वास्तव में दर्पण नहीं है
बहुत क्रूर है यह शीशा,
पर आईने को दोष देने का कोई फ़ायदा नहीं है
 
शीशे पर नीला लहू बह रहा है
दयालु सूर्य को यह बताएँ
शरद ऋतु के आकाश में बादलों को तैरते हुए देखें
दुनिया में मुझसे ज़्यादा ख़ूबसूरत कौन है ?
 
आत्मा को
हमने टीन के पिंजरे में क़ैद कर रखा है
जो अपने चारों ओर एक अटूट घेरा खींच रही है
 
इस सर्द दोपहर में कौन खड़ा है आँगन में
वहाँ पक्षियों की तरह कौन बुलाता है
कौन अपने दिल को बाहर निकालता है
और खोए हुए को रोशनी दिखाता है,
कौन ?
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