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कौन ? / शहनाज़ मुन्नी / अनिल जनविजय

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आप जिसे दर्पण समझते हैं,
वह वास्तव में दर्पण नहीं है
बहुत क्रूर है यह शीशा,
पर आईने को दोष देने का कोई फ़ायदा नहीं है

शीशे पर नीला लहू बह रहा है
दयालु सूर्य को यह बताएँ
शरद ऋतु के आकाश में बादलों को तैरते हुए देखें
दुनिया में मुझसे ज़्यादा ख़ूबसूरत कौन है ?

आत्मा को
हमने टीन के पिंजरे में क़ैद कर रखा है
जो अपने चारों ओर एक अटूट घेरा खींच रही है

इस सर्द दोपहर में कौन खड़ा है आँगन में
वहाँ पक्षियों की तरह कौन बुलाता है
कौन अपने दिल को बाहर निकालता है
और खोए हुए को रोशनी दिखाता है,
कौन ?

मूल बांगला से अनुवाद : अनिल जनविजय

लीजिए, अब यही कविता मूल बांगला में पढ़िए
           শাহনাজ মুন্নী
                কে?

যাকে তুমি আয়না মনে করো আসলে তা আয়না নয়
অতি নির্মম কাচ-, আয়নাকে দোষ দিয়ে লাভ নেই
আয়নার গায়ে বইছে নীল রক্ত
বরং দয়ালু সূর্যকে বলো
শুধাও শরৎকালের আকাশে ভেসে যাওয়া মেঘ-কে
আমার চাইতে রূপবতী কে আছে পৃথিবীতে?

যে আত্মাকে আমরা বন্দী করেছি টিনের কৌটায়
কে তাকে ঘিরে এঁকে দিচ্ছে অলঙ্ঘ্য বৃত্ত
এই নিঠুর দুপুরে কে দাঁড়িয়েছে কাঠগড়ায়
ওইখানে পাখিদের মতো কে ডাক দিয়ে যায়
কে তার হৃৎপিণ্ড- উপড়ে এনে পথহারা লোকদের আলো দেখায়, কে?