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{{KKRachna
|रचनाकार=पाब्लो नेरूदा
|अनुवादक=अशोक पाण्डे
|संग्रह=बीस प्रेम कविताएँ और उदासी का एक गीत / पाब्लो नेरूदा / अशोक पाण्डे
}}
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<poem>
दोपहरों से टिककर मैं अपने उदास जाल फेंकता हूँ,
समुद्र सरीखी तुम्हारी आँखों की दिशा में ।

यहाँ सबसे ऊँची आग में मेरा अकेलापन पसरकर जलता है लपटों में,
डूबते आदमी की बाँहों जैसी उसकी बाँहें घूमती हैं ।

लाइटहाइस के नज़दीक के समुद्र जैसी गतिमान,
तुम्हारी आँखों के आर-पार मैंने लाल रंग के संकेत भेजे ।

तुम सिर्फ़ अन्धेरा रखती हो अपने पास मेरी सुदूर स्त्री,
तुम्हारे आदर में से कभी-कभी भय का तट उभरता है ।

दोपहरों से टिककर मैं अपने उदास जाल फेंकता हूँ,
उस समुद्र में जो तुम्हारी समुद्री आँखों पर पछाड़ें मारता है ।

रात की चिड़िया पहले शिकारी पर चोंच मारती है,
जो मेरी आत्मा जैसे झपझपाते हैं, जब मैं तुम्हें प्रेम करता हूँ ।

रात भागती जाती है छाया जैसी अपनी घोड़ी पर,
ज़मीन पर छितराती हुई नीली झालरें ।


'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : अशोक पाण्डे'''
</poem>
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