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चेहरे पे एक मुखौटा-सा है, आकुल-व्याकुल सा है यौवन
बारीक और महीन बुनाई के घूँघट से ढका हुआ चेहरा
तेरे और गुस्से में जो प्यार छुपा, है वही रति का पंचशर घेरा  
'''मूल रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
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