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11:57, 28 फ़रवरी 2023 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=मोहम्मद मूसा खान अशान्त
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
मिलने जुलने का सिलसिला रखिये
दरमियां फिर भी फ़ासला रखिये
रेत पर भी महल बना लेंगे
दिल में भरपूर हौसला रखिये
आएगा ही बहार का मौसम
घर के दरवाजों को खुला रखिये
कुछ भी कहता रहे ज़माना पर
आप बस अपना फैसला रखिये
हँस के सह लेंगे हर सितम मूसा
अपना चेहरा खिला खिला रखिये
</poem>