भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मिलने जुलने का सिलसिला रखिये / मोहम्मद मूसा खान अशान्त

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मिलने जुलने का सिलसिला रखिये
दरमियां फिर भी फ़ासला रखिये

रेत पर भी महल बना लेंगे
दिल में भरपूर हौसला रखिये

आएगा ही बहार का मौसम
घर के दरवाजों को खुला रखिये

कुछ भी कहता रहे ज़माना पर
आप बस अपना फैसला रखिये

हँस के सह लेंगे हर सितम मूसा
अपना चेहरा खिला खिला रखिये