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18:58, 17 मई 2023 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=कमल जीत चौधरी
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
खेत - खेत
शहर - शहर
तुम्हारे बेआवाज़ जहाज़
आसमान से फेंक रहे हैं
शक्कर की बोरियाँ
इस देश के जिस्म पर
फैल रही हैं चींटियाँ
छलाँग लगाने के लिए नदी भी नहीं बची —
मिठास के व्यापारी
यह दुनिया मीठी हो सकती है
पर मेरी जीभ तुम्हारा उपनिवेश नहीं हो सकती
यह हिन्दी का नमक चाटती है ।
</poem>
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