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हिन्दी का नमक / कमल जीत चौधरी
Kavita Kosh से
खेत - खेत
शहर - शहर
तुम्हारे बेआवाज़ जहाज़
आसमान से फेंक रहे हैं
शक्कर की बोरियाँ
इस देश के जिस्म पर
फैल रही हैं चींटियाँ
छलाँग लगाने के लिए नदी भी नहीं बची —
मिठास के व्यापारी
यह दुनिया मीठी हो सकती है
पर मेरी जीभ तुम्हारा उपनिवेश नहीं हो सकती
यह हिन्दी का नमक चाटती है ।