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18:56, 20 मई 2023 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=बैर्तोल्त ब्रेष्त
|अनुवादक=मोहन थपलियाल
|संग्रह=इकहत्तर कविताएँ और तीस छोटी कहानियाँ / बैर्तोल्त ब्रेष्त / मोहन थपलियाल
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
'''एक'''
अब इस रात में
जब मैं तुम्हें प्यार करता हूँ
सफ़ेद बादल गुमसुम आकाश में घुमड़ते हैं
बजरी पर पानी का गुस्सा उतरता है
और बंजर ज़मीन के ऊपर
थरथराती है हवा ।
'''दो'''
झरने झरते हैं
पहाड़ की ढाल पर
हर साल
ऊपर आकाश में
मौज़ूद हैं बादल सदैव ।
'''तीन'''
बाद में, जब साल होंगे वीरान
बादल और कोहरा तब भी रहेंगे मौज़ूद
पानी गुस्सा उतारता रहेगा बजरी पर
और बंजर ज़मीन के ऊपर थरथराती रहेगी हवा ।
(1920-25)
'''मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : मोहन थपलियाल'''
</poem>
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