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साल-दर-साल / बैर्तोल्त ब्रेष्त / मोहन थपलियाल

एक

अब इस रात में
जब मैं तुम्हें प्यार करता हूँ
सफ़ेद बादल गुमसुम आकाश में घुमड़ते हैं
बजरी पर पानी का गुस्सा उतरता है
और बंजर ज़मीन के ऊपर
थरथराती है हवा ।

दो

झरने झरते हैं
पहाड़ की ढाल पर
हर साल
ऊपर आकाश में
मौज़ूद हैं बादल सदैव ।

तीन

बाद में, जब साल होंगे वीरान
बादल और कोहरा तब भी रहेंगे मौज़ूद
पानी गुस्सा उतारता रहेगा बजरी पर
और बंजर ज़मीन के ऊपर थरथराती रहेगी हवा ।

(1920-25)

मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : मोहन थपलियाल