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मधु वृक्ष / कविता भट्ट

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मधुपूरित मधुपर्क से
मुझे स्निग्ध करता सींचता है।
'''मेरे अंग- अंग में''''''उगने लगती हैं''''''असंख्य तरुणी लताएँ''''''जो लिपटने और ''' '''आरूढ़ होने को ''''''व्याकुल होती है''''''उस मधुवृक्ष से'''
पुष्पित और पल्लवित
मतवाली- हठीली
जब सभी दुश्चिताएँ
हो जाती हैं निर्मूल
'''प्रेम में चुम्बन और आलिंगन ''' '''इतने सशक्त और प्रभावी भी होते हैं''''''सपने देखने के साहस ने ही बताया''''''कि पर विहीन होकर भी''''''दिव्य और अनंत उड़ानें भरी जा सकती हैं'''
इसीलिए, वह सामान्य नहीं
अति विशेष है...
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