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मधु वृक्ष / कविता भट्ट

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वह सामान्य नहीं
अति विशेष है
पता है क्यों?
क्योंकि एक वही है
जिसने सपने देखने का
साहस मुझे दिया
रंगीन और चमकीले सपने
गुलाबी, केसरिया, पीले,
लाल, नीले, हरे, आकाशी...
सपने दिखाए ही नहीं
अपितु करता है हठ
उनको धरा पर उतारने की
वह हठी है
मुझे लेकर उड़ता है
असीम अंतरिक्ष में
उसने ऊँची-ऊँची पहाड़ियों पर
बनाए है आशा के प्रासाद
प्रासाद के गवाक्षों से
मुझे दिखता है
अरुणिम प्रकाश, हरियाली,
फूल, तितलियाँ, हिमाच्छादित पर्वत शृंखलाएँ,
रात्रि को पूनम का चंद्रमा
शीतल करता है कामनाओं को
वहीं एक अध्ययन कक्ष में
रातों को घूमती हूँ
पुस्तकों के घने कानन में
पगडंडियों से होते हुए
पहुँचती हूँ शिखर तक
सांसारिक प्रसिद्धि का मोह नहीं
शान्ति का सिद्धस्थल है वह
तुम्हें पता है?
भव्य प्रासाद में
एक ऐसा कक्ष भी है
जहाँ स्वप्न धरा पर उतरते हैं
उस कक्ष की शान्त शय्या पर विश्रांति में
जब वह मुझे देखता है
तो उसकी आँखों में होता है
अनंत मधुमास
मधुपूरित मधुपर्क से
मुझे स्निग्ध करता सींचता है।
मेरे अंग- अंग में
उगने लगती हैं
असंख्य तरुणी लताएँ
जो लिपटने और
आरूढ़ होने को
व्याकुल होती है
उस मधुवृक्ष से
पुष्पित और पल्लवित
मतवाली- हठीली
इन लताओं को पता है
कि माटी उर्वरा है हृदय की
गहरे गति करने लगते हैं
लताओं के मूल
यही वह क्षण है
जब सभी दुश्चिन्ताएँ
हो जाती हैं निर्मूल
प्रेम में चुम्बन और आलिंगन
इतने सशक्त और प्रभावी भी होते हैं
सपने देखने के साहस ने ही बताया
कि पर विहीन होकर भी
दिव्य और अनंत उड़ानें भरी जा सकती हैं
इसीलिए, वह सामान्य नहीं
अति विशेष है...