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कौन मेरी यह आशंका औ’ डर, गिरती ओस को बताएगा
पहले बोलेगा मुर्गा एक, ज़ोर से कुकड़ूँ-कू करके गुर्राएगा
फिर सारे मुर्गे बोल उठेंगे और औ’ क्या सब-कुछ ख़त्म हो जाएगा ?
एक-एक कर गुज़रे वर्षों को, एक-एक कर चुनता हूँ
बारी-बारी से इन सालों में बीते अन्धेरे को धुनता हूँ
ये गुज़रे साल कुछ तो कहेंगे, बतलाएँगे बदलाव की बात
वर्षा, धरती औ’ प्रेम सहित सबका बदल जाएगा रे ये गात !  
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