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15:34, 12 दिसम्बर 2023 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=हरीशचन्द्र पाण्डे
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
भूख लगने पर ढ़ूँढ़ के खाता था आहार
भरा होने पर मिले हुए को छोड़ देता था
पेट ही जेब रहा
कोई भी अतिरिक्त जेब न थी
कोई बाहरी पेट न था
वह आदिम, आदमी होने की राह पर था
आदिम ने पेट भरते ही कहा था — आज, बस, इतना ही
होते हुए आदमी ने कहा —
कल के लिए भी रख लो,
परसों के लिए गाड़ दो
आदमी ने कहा — बरसों के लिए
अब धड़ नंगा नहीं रह गया था
अब पेट ही जेब नहीं
</poem>