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<poem>
भूख लगने पर ढ़ूँढ़ के खाता था आहार
भरा होने पर मिले हुए को छोड़ देता था

पेट ही जेब रहा
कोई भी अतिरिक्त जेब न थी
कोई बाहरी पेट न था

वह आदिम, आदमी होने की राह पर था
आदिम ने पेट भरते ही कहा था — आज, बस, इतना ही

होते हुए आदमी ने कहा —
कल के लिए भी रख लो,
परसों के लिए गाड़ दो

आदमी ने कहा — बरसों के लिए

अब धड़ नंगा नहीं रह गया था
अब पेट ही जेब नहीं
</poem>
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