भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आदिम बनाम आदमी / हरीशचन्द्र पाण्डे
Kavita Kosh से
भूख लगने पर ढ़ूँढ़ के खाता था आहार
भरा होने पर मिले हुए को छोड़ देता था
पेट ही जेब रहा
कोई भी अतिरिक्त जेब न थी
कोई बाहरी पेट न था
वह आदिम, आदमी होने की राह पर था
आदिम ने पेट भरते ही कहा था — आज, बस, इतना ही
होते हुए आदमी ने कहा —
कल के लिए भी रख लो,
परसों के लिए गाड़ दो
आदमी ने कहा — बरसों के लिए
अब धड़ नंगा नहीं रह गया था
अब पेट ही जेब नहीं