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03:58, 25 दिसम्बर 2023 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=गरिमा सक्सेना
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<poem>
दिन बदल देते हैं वो रात बदल देते हैं
अपने बलबूते जो हालात बदल देते हैं
कैसे मंज़िल की तमन्ना वो करेंगे पूरी
दो क़दम चलके जो शुरुआत बदल देते हैं
इतना आसान नहीं उनपे भरोसा करना
वो तो हर बात में ही बात बदल देते हैं
बात करते है उसूलों की बड़ी दिन में वे
साथी बिस्तर पे जो हर रात बदल देते हैं
जिनको जीना है डरेंगे वो कहाँ पतझड़ से
वक़्त पर पेड़ भी तो पात बदल देते हैं
दिल में जो बात है होठों पे वो लाते ही नहीं
मौन को साध के जज़्बात बदल देते हैं
लोग जो होते हैं औरों से अलग दुनिया में
सारी दुनिया के ख़यालात बदल देते हैं
</poem>
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