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दिन बदल देते हैं वो रात बदल देते हैं / गरिमा सक्सेना
Kavita Kosh से
दिन बदल देते हैं वो रात बदल देते हैं
अपने बलबूते जो हालात बदल देते हैं
कैसे मंज़िल की तमन्ना वो करेंगे पूरी
दो क़दम चलके जो शुरुआत बदल देते हैं
इतना आसान नहीं उनपे भरोसा करना
वो तो हर बात में ही बात बदल देते हैं
बात करते है उसूलों की बड़ी दिन में वे
साथी बिस्तर पे जो हर रात बदल देते हैं
जिनको जीना है डरेंगे वो कहाँ पतझड़ से
वक़्त पर पेड़ भी तो पात बदल देते हैं
दिल में जो बात है होठों पे वो लाते ही नहीं
मौन को साध के जज़्बात बदल देते हैं
लोग जो होते हैं औरों से अलग दुनिया में
सारी दुनिया के ख़यालात बदल देते हैं