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रिश्ते / राम सेंगर

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|संग्रह=ऊँट चल रहा है / राम सेंगर
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<poem>
कहा-सुनी में रिश्ते टूटे
जैसे कच्ची डोर ।

पक्ष-विपक्ष अहम के,कोरे
समझ-समझ के फेर ।
मरे जा रहे ज्यों अंधे के
हाथों लगी बटेर ।
फेंक रहे कंकड़ कीचड़ में
उठती नहीं हिलोर ।

कहा-सुनी में रिश्ते टूटे
जैसे कच्ची डोर ।

प्रण के दोंदे, झुकें न तिलभर
उछरें नौ-नौ हाथ ।
लहज़े पर सब गाल बजाए
बात न कोई बात ।
भाव भृकुटि के, छवि के तुर्रे,
भ्रम का ओर न छोर ।

कहा-सुनी में रिश्ते टूटे
जैसे कच्ची डोर ।
</poem>
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