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27 जनवरी {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अलिक्सान्दर सिंकेविच
|अनुवादक=सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
इस शहर में हूँ बहुत दिनों से
और यह भूल चुका हूँ
कि ख़ामोशी और पेड़ कैसे होते हैं ।
लेकिन इस सुबह अच्छी रोशनी
जैसे किसी गर्भ में अव्यक्त निहित है ।
और मैं बहुत यक़ीन के साथ नहीं कह सकता
कि यह अचानक बहकर कहाँ चली जाएगी
किसी मुसकान में, ख़ुशी में या धूप में
या शायद केवल —
नीले बादलों में ?
और बुराई ?
बुराई की बात मत करो ।
वह कोई शक़्ल अख़्तियार कर
आत्मा, मन और ख़ून के
शून्य को भरना चाहेगी ।
लेकिन यह सुबह अब आ जाने पर,
अपने लिए कोई जगह या शक्ति पाने में
असमर्थ होकर,
बरसात की झींसियों की तरह उड़ गई है ।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : सर्वेश्वर दयाल सक्सेना'''
'''’दिनमान’ के 19 अगस्त 1973 के अंक में प्रकाशित'''
</poem>