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मैं शहर में हूँ / अलिक्सान्दर सिंकेविच / सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
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इस शहर में हूँ बहुत दिनों से
और यह भूल चुका हूँ
कि ख़ामोशी और पेड़ कैसे होते हैं ।
लेकिन इस सुबह अच्छी रोशनी
जैसे किसी गर्भ में अव्यक्त निहित है ।
और मैं बहुत यक़ीन के साथ नहीं कह सकता
कि यह अचानक बहकर कहाँ चली जाएगी
किसी मुसकान में, ख़ुशी में या धूप में
या शायद केवल —
नीले बादलों में ?
और बुराई ?
बुराई की बात मत करो ।
वह कोई शक़्ल अख़्तियार कर
आत्मा, मन और ख़ून के
शून्य को भरना चाहेगी ।
लेकिन यह सुबह अब आ जाने पर,
अपने लिए कोई जगह या शक्ति पाने में
असमर्थ होकर,
बरसात की झींसियों की तरह उड़ गई है ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
’दिनमान’ के 19 अगस्त 1973 के अंक में प्रकाशित