गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
क्या तुम्हें उपहार दूँ / अमरेन्द्र
No change in size
,
10 फ़रवरी
मैंने चाहा ही नहीं था मोतियों का घर मिले
सब तरह के सुख लिए
त्रोता
त्रेता
, कभी द्वापर मिले
मैंने कुछ अंगार माँगा था वो मेरे पास है
तुम कहो तो आज वह अंगार दूँ मैं ।
Arti Singh
350
edits