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नमी व धूप हवा दे गुलाब खिलने दे / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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07:05, 26 फ़रवरी 2024
कहाँ ये गर्म उसाँसें कहाँ गुलों की कशिश,
चमन मेरा न जला दे गुलाब खिलने दे।
</poem>
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