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नमी व धूप हवा दे गुलाब खिलने दे / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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नमी व धूप हवा दे गुलाब खिलने दे।
नक़ाब रुख़ से उठा दे गुलाब खिलने दे।
गुलाब के हैं बगीचे ये तेरे गाल, इन्हें,
न आँसुओं से जला दे गुलाब खिलने दे।
चुभें बदन में हजारों गुलाब की डालें,
दवा लबों से लगा दे गुलाब खिलने दे।
खुले जो बाल तेरे पल में छुप गया सूरज,
लटें दो चार हटा दे गुलाब खिलने दे।
कहाँ ये गर्म उसाँसें कहाँ गुलों की कशिश,
चमन मेरा न जला दे गुलाब खिलने दे।