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{{KKRachna
|रचनाकार=फ़ेर्नान्दो पेस्सोआ
|अनुवादक=अनिल जनविजय
|संग्रह=
}}
<poem>
घर पहुँचने के लिए
उड़ान भरने को तैयार पेड़ों को
तूफ़ान
सब्र करने के लिए मजबूर करता है ।
देखो,
कितना तड़प रहे हैं वे
अपनी डालें-डगालें हिला रहे हैं ।
अपने घर
अपने ब्रह्माण्ड में
पहुँचने के लिए
बेचैन हैं वे !