1,172 bytes added,
26 अगस्त {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सुरंगमा यादव
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
मुझमें कुछ ऐसी बात कहाँ
जो मुझको याद करे ये जहाँ
आयी हूँ जग में कुछ पल को
जाना होगा फिर से कल को
वो दृष्टि हटाता न पल को
मर्जी से उसकी चले जहाँ
मुझमे कुछ ऐसी बात कहाँ...
खेतों में फसलों का जीवन
लहरायेगा कितने ही दिन
पल- पल होता है परिवर्तन
उगती है नित नव पौध यहाँ
मुझमें कुछ ऐसी बात कहाँ....
हँसते-गाते थे जो संग में
ढूँढ़े न मिले वो अब जग में
रह गयी कहानी बस मन में
है देश कहाँ वो गये जहाँ।
मुझमें कुछ ऐसी बात कहाँ..
</poem>