Changes

'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=को उन |अनुवादक=कुमारी रोहिणी |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=को उन
|अनुवादक=कुमारी रोहिणी
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
वह समन्दर बिना पुरखों के
इस तरह लहरों में क्यों टूट रहा है, रोज़-रोज़, हर रोज़
क्योंकि चाहता है आसमान हो जाना
जो यूँ तो वह हो नहीं सकता !

क्यों वह आसमान
बेवक़ूफ़ी में
दिन और रात
बनाता-मिटाता रहता है बादलों को
क्योंकि उसे चाह है नीचे धरती पर फैला विशाल समन्दर हो जाने की
जो यूँ तो वह हो नहीं सकता !

क्यों मैं नहीं मैं जी सकता अपना जीवन एक ख़ाली बोतल की तरह,
क्यों नहीं मैं रह सकता केवल अपने दोस्तों और अहबाबों के साथ

क्योंकि मैं बनना चाहता हूँ कुछ और ही, कोई और ही, एक बार….
वरना
मुझे बिताना होगा अपना पूरा जीवन अनगिनत अनजाने लोगों के बीच
जिनके बीच मैं जीता आ रहा हूँ इस दुनिया में

तुम सभी !
हैरान हो इस लड़के पर ! हैरान हो इस लड़के के गीत पर !

'''मूल कोरियाई भाषा से अनुवाद : कुमारी रोहिणी'''
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,801
edits