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14 अप्रैल {{KKCatGhazal}}
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आपने जो मुझे खत लिखे देख लूँ
बारहा रोज़ो-शब जो पढ़े देख लूँ
फिर से बन-ठन के महफ़िल में आओ ज़रा
आज जलवे मैं फिर आपके देख लूँ
ज़ख़्म दिल के बहुत वक़्त ने भर दिए
कितने बाक़ी हैं अब अध भरे देख लूँ
पेड़-पौदे लगाए थे बचपन में जो
आज गुलशन में उनको हरे देख लूँ
फ़ितरतन सबको दी है खुशी उम्र भर
ज़िंदगी में बहुत ग़म सहे देख लूँ
यादे माज़ी से महफ़िल सजी है अभी
उम्र भर के सभी मरहले देख लूँ
मुझको सोने दे अब तू भी सो जा 'रक़ीब'
ख़्वाब में तू मुझे मैं तुझे देख लूँ
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