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आपने जो मुझे ख़त लिखे देख लूँ / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
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आपने जो मुझे ख़त लिखे देख लूँ
मैंने भी रोज़-ओ-शब जो पढ़े देख लूँ
फिर से महफ़िल में सज धज के आओ ज़रा
आज जल्वे मैं फिर आपके देख लूँ
ज़ख़्म दिल के तो कुछ वक़्त ने भर दिए
और कितने अभी रह गये देख लूँ
पेड़ पौदे लगाए थे बचपन में जो
है तमन्ना कि उनको हरे देख लूँ
फ़ितरतन बाँट दीं सबको ख़ुशियाँ मगर
रंजो-ग़म जो मिले हैं मुझे देख लूँ
याद-ए-माज़ी का महफ़िल में है तज़्किरा
पेश आए थे जो हादसे देख लूँ
मुझको सोने दे अब तू भी सो जा 'रक़ीब'
ख़्वाब में तू मुझे, मैं तुझे देख लूँ