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14 जून {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=चन्द्र गुरुङ
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<poem>
वो साधारण और नेक इंसान था
सबसे पहले उसकी प्रेमपूर्ण स्पर्शचेता
उंगलियों को छीन लिया गया
उसके परोपकारी हाथों को तोड़ दिया गया
इसके बाद
निर्दोष चेहरे को क्षत-विक्षत किया गया
सत्य पर चलने वाले पैर तोड़ लिए गए
मृदुभाषी जीभ निकाल दी गई
दबा दी गई उसकी मधुर बोली
आखिर में चिथड़े-चिथड़े कर दिया उसका दिल
आज सुबह
अखबार वाला लड़का इस घटना को
चिल्लाते हुए फ़िर रहा है
ईश्वर की हत्या !
ईश्वर की हत्या !!
ईश्वर की हत्या !!!
</poem>