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हम सुपारी-से / कुँअर बेचैन

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काल-घर जाता हुआ मेहमान
 
चार कंधों की
रेजगारी-से।
 
बचपना-ज्यों सूर, कवि रसखान
है बुढ़ापा-रहिमना का ग्यान
 
दिन जवानी के
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