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|रचनाकार=मृदुल कीर्ति}}
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<span class="mantra_translation">
हम लोगों का आराध्य जो है, आत्मा वह कौन है?<br>
मुखरित हो वाणी तत्व जिससे, तत्व एसा कौन है?<br>
सूंघते जिससे सुगंधें , सुनता व् देखे कौन है,?<br>
अस्वादु- स्वादु वास्तु को करता विभाजित कौन है?॥ [ १ ]<br><br>
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यह जो हृदय है यही मन भी प्रज्ञा, आज्ञा, ज्ञान भी,<br>
देखने की शक्ति बुद्धि व् धैर्य मत विज्ञान भी,<br>
शुभ स्मरण संकल्प शक्ति , मनन प्राण व् कामना,<br>
सब शक्तियां उसमें समाहित,ब्रह्म मय परमात्मा॥ [ २ ]<br><br>
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<span class="mantra_translation">
यही ब्रह्मा, इन्द्र, प्रजापति, यही देवता जलवायु भू,<br>
आकाश अग्नि, पंचभूत, नियंता इनका है स्वयं भू,<br>
ब्रह्माण्ड जड़ जंगम व् चेतन कीट पशु प्राणी सभी,<br>
प्रज्ञा स्वरूपी ब्रह्म से ही निष्पन्न है सृष्टि सभी॥ [ ३ ]<br><br>
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<span class="mantra_translation">
जिस प्राणी को परब्रह्म के प्रज्ञान रूप का ज्ञान हो,<br>
उसके लिए सब दिव्य भोग हों, अमरता का विधान हो.<br>
इस लोक से ऊपर हो अति -अति परम धाम में धाम हो,<br>
फ़िर जन्म -मृत्यु विहीन जड़ता हीन शुद्ध अनाम हो॥ [ ४ ]<br><br>
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