तृतीय अध्याय / प्रथम खंड / ऐतरेयोपनिषद / मृदुल कीर्ति
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हम लोगों का आराध्य जो है, आत्मा वह कौन है?
मुखरित हो वाणी तत्व जिससे, तत्व एसा कौन है?
सूंघते जिससे सुगंधें , सुनता व् देखे कौन है,?
अस्वादु- स्वादु वास्तु को करता विभाजित कौन है?॥ [ १ ]
यह जो हृदय है यही मन भी प्रज्ञा, आज्ञा, ज्ञान भी,
देखने की शक्ति बुद्धि व् धैर्य मत विज्ञान भी,
शुभ स्मरण संकल्प शक्ति , मनन प्राण व् कामना,
सब शक्तियां उसमें समाहित,ब्रह्म मय परमात्मा॥ [ २ ]
यही ब्रह्मा, इन्द्र, प्रजापति, यही देवता जलवायु भू,
आकाश अग्नि, पंचभूत, नियंता इनका है स्वयं भू,
ब्रह्माण्ड जड़ जंगम व् चेतन कीट पशु प्राणी सभी,
प्रज्ञा स्वरूपी ब्रह्म से ही निष्पन्न है सृष्टि सभी॥ [ ३ ]
जिस प्राणी को परब्रह्म के प्रज्ञान रूप का ज्ञान हो,
उसके लिए सब दिव्य भोग हों, अमरता का विधान हो.
इस लोक से ऊपर हो अति -अति परम धाम में धाम हो,
फ़िर जन्म -मृत्यु विहीन जड़ता हीन शुद्ध अनाम हो॥ [ ४ ]