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<poem>
उसको घर लौट आना ही था
घौंसले घोंसले में ठिकाना ही था
कैमरा ‘फ़ेस’ करते हुए
तन से व्यापार करती थी जो
रूप उसका खजाना खज़ाना ही था
शत्रु पर वार करना भी था
और खुद ख़ुद को बचाना ही था
रोशनी घर में घुसते हुए
मुक्ति के पक्षधर के लिए
जिन्दगी कैदखाना ज़िन्दगी क़ैदख़ाना ही था.
</poem>
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