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उसको घर लौट आना ही था / जहीर कुरैशी
Kavita Kosh से
उसको घर लौट आना ही था
घोंसले में ठिकाना ही था
कैमरा ‘फ़ेस’ करते हुए
आदतन मुस्कुराना ही था
बूढ़े तोते पढ़ें न पढ़ें
शिक्षकों को पढ़ाना ही था
तन से व्यापार करती थी जो
रूप उसका खज़ाना ही था
शत्रु पर वार करना भी था
और ख़ुद को बचाना ही था
रोशनी घर में घुसते हुए
आँख को चौंधियाना ही था
मुक्ति के पक्षधर के लिए
ज़िन्दगी क़ैदख़ाना ही था.