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{{KKRachna
|रचनाकार=श्याम सखा 'श्याम'
}}
<Poem>
वो मेरा रकी़ब था यारो
दिल के पर करीब था यारो

चाहतों की चाह थी जिससे
वो लिये ज़रीब था यारो

पागलों सी बातें थी उसकी
फिर जरूर अदीब था यारो

गुम हुआ रकीब जब मेरा
मैं हुआ गरीब था यारो

दोस्त दुश्मनों सा ही तो था
मामला अजीब था यारो

अपने ही हुए थे बेगाने
‘श्याम’बदनसीब था यारो
</poem>