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17:04, 18 जनवरी 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अवतार एनगिल
|एक और दिन / अवतार एनगिल
}}
<poem>
कुतुब मीनार की कील पर
टंगा हुआ नगर
अधर में लटका हुआ था
राजधानी की भीगी सड़क पर
भागता एक बैल
बेदम होकर
थमने लगा
तभी कहीं
गज़र बजा
अनुभवी गाड़ीवान ने
चाबुक उलटा पकड़ा
और उसके अण्डकोष खोच दिए
बैल विदका
उसकी पीठ कंपकपाई
एक जोड़ी सींग पीछे घूमे
गाड़ीवान ने लगाम झटकी
जादूगरी तरकीब से
चाबुक सीथा किया
साधा
फटकारा
तो बैल सीधा हो लिया
‘तेरी तो मैं....’ कहते हुए
आदमी ने
बैल को
अपनी औकात याद दिलाई
और उसकी माँ से
नाता जोड़ दिया
इधर, यमुना पार
यमुना संग भागते हुए
याद नहीं कर पाता मनुष्य
अपना कोई वृंदावन
उधर, सोचता है बैल---
आज रात
इन भीग़ी सड़कों पर
चल होंगे
और भी कितने बैल?
</poem>