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राजधानी में कितने बैल / अवतार एनगिल
Kavita Kosh से
कुतुब मीनार की कील पर
टंगा हुआ नगर
अधर में लटका हुआ था
राजधानी की भीगी सड़क पर
भागता एक बैल
बेदम होकर
थमने लगा
तभी कहीं
गज़र बजा
अनुभवी गाड़ीवान ने
चाबुक उलटा पकड़ा
और उसके अण्डकोष खोच दिए
बैल विदका
उसकी पीठ कंपकपाई
एक जोड़ी सींग पीछे घूमे
गाड़ीवान ने लगाम झटकी
जादूगरी तरकीब से
चाबुक सीथा किया
साधा
फटकारा
तो बैल सीधा हो लिया
‘तेरी तो मैं....’ कहते हुए
आदमी ने
बैल को
अपनी औकात याद दिलाई
और उसकी माँ से
नाता जोड़ दिया
इधर, यमुना पार
यमुना संग भागते हुए
याद नहीं कर पाता मनुष्य
अपना कोई वृंदावन
उधर, सोचता है बैल---
आज रात
इन भीग़ी सड़कों पर
चल होंगे
और भी कितने बैल?