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बारिश के बाद / अवतार एनगिल

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|रचनाकार=अवतार एनगिल
|एक और दिन / अवतार एनगिल
}}
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लगातार बारिश के बाद
तमतमाया हुआ बंदी सूरज
निकला बाहर
बादल और धुंध को
सुनहरी डोरियों में लपेटा,
बाँधा उसने
बनाया गट्ठर
और देखते-देखते
ढलान पर दिया लुढ़का

ठीक तभी
उस चित्रकार ने
खिल- खिल हँसते हुए
धूप की कूची को
देवदारुओं के रंग में डुबोया
और पोत दिया यहाँ-वहाँ
कुनमुनाए---
घर, गली ,द्वार
सजग हुए
घाटी के लोग

अभी-अभी खेलने निकल आए
बच्चों के चेहरों पर
झिलमिलाती है
जोगिया धूप की आभा।
</poem>
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