भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बारिश के बाद / अवतार एनगिल
Kavita Kosh से
लगातार बारिश के बाद
तमतमाया हुआ बंदी सूरज
निकला बाहर
बादल और धुंध को
सुनहरी डोरियों में लपेटा,
बाँधा उसने
बनाया गट्ठर
और देखते-देखते
ढलान पर दिया लुढ़का
ठीक तभी
उस चित्रकार ने
खिल- खिल हँसते हुए
धूप की कूची को
देवदारुओं के रंग में डुबोया
और पोत दिया यहाँ-वहाँ
कुनमुनाए---
घर, गली ,द्वार
सजग हुए
घाटी के लोग
अभी-अभी खेलने निकल आए
बच्चों के चेहरों पर
झिलमिलाती है
जोगिया धूप की आभा।