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22:43, 21 जनवरी 2009 {{KKGlobal}}
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<Poem>
बारिश न होने पर
लगता है
पेड़ शर्मिंदा हैं
बेचारी जड़ें
मीलों पानी भरने जाती हैं
खाली घड़े लिए लौट आती हैं
बारिश न होने पर
लगता है पक्षी संकट में हैं
सुबह होते ही
गीत बीनने निकले थे
शाम ढले कँकड़ बटोर लाए हैं
बारिश न होने पर
कवि परेशान है
न काग़ज़ की कश्ती है
न माँझी की नाव है
सावन आतंकित है
बारहमासा बाग़ी है
बारिश न होने पर
धरती कलंकित है
सारी फ़सल खाकर भी
भूखी की भूखी है।
</poem>