बारिश न होने पर 
लगता है 
पेड़ शर्मिंदा हैं 
बेचारी जड़ें 
मीलों पानी भरने जाती हैं
खाली घड़े लिए लौट आती हैं 
बारिश न होने पर 
लगता है पक्षी संकट में हैं
 सुबह होते ही 
गीत बीनने निकले थे 
शाम ढले कँकड़ बटोर लाए  हैं 
बारिश न होने पर 
कवि परेशान है
न काग़ज़ की कश्ती है 
न माँझी  की नाव है 
सावन आतंकित है 
बारहमासा बाग़ी है 
बारिश न होने पर 
धरती कलंकित है
सारी फ़सल खाकर भी 
भूखी की भूखी है।