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कमरे में अँधेरा होते ही / चन्द्रकान्त देवताले
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02:02, 22 जनवरी 2009
कम-सा देखते हुए निश्चय ही सोच रहा था ज़्यादह
तुम कब लगती हो भोंदू
जैसे हर एक
shakhs
शख्स
ख़ास ढंग में
या अपने किसी सही वक़्त में
हो जाता कद्दू की तरह
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