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[[Category:कविता]]
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आ रहा स्मरण दृगगोचर कब होंगे प्रियतम! कहते थे ”सुमुखि! स्वर्ग का नन्दन वन।अब अलस सिहरती काया है।इस वृन्दावन आनन्दधाम से तुल न कभीं सकता इसका चिन्मय कणचिर सुन्दर! तव प्रणय-कण।निमंत्रण आया है।अगणित उडु नीलाम्बर नूतन घन सोम-रश्मिकोकिल बसंत की चिर सहचरि कहती प्राणेश-रंजिता निशा।निमंत्रण है।दिनमान कमलिनी‘पी कहाँ’ पपीहा की वाणी सद्यः छू गयी विरह-कुल-वल्लभ यह धेनु धूलि यह अरूण उषा।व्रण है।यह कोकिल-रव-मुखरित वनस्थली यह जननी-कृत शिशु-चुम्बन।”आमंत्रण है” मुकुलित रसाल की कहती सुरभित छाया है।यह प्रेयसिकल-प्रियतम प्रणयकल छल-कलह यह आलिंगन यह अभिनन्दन।“छल सरि इंगित में प्रिय! तुमने मुझे बुलाया है।हे वृन्दावनचारीफिर रही प्राण! बेसुध विकला बावरिया बरसाने वाली ।क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥83॥ वनमाली॥86॥</poem>