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17:30, 3 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सौदा
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[[category: ग़ज़ल]]
<poem>
ख़त आ चुका, मुझसे है वही ढंग अब अब तलक
वैसा ही मिरे नाम से है नंग1 अब तलक
देखे है मुझको अपनी गली में तो फिर मुझे
वैसी ही गालियाँ हैं, वही संग2 अब तलक
आलम से की है सुलह मगर एक मेरे साथ
झगड़े वही अबस के3, वही जंग अब तलक
सुनता है जिस जगह वो मिरा ज़िक्र एक बार
भागे है वाँ4 से लाख ही फ़रसंग5 अब तलक
'सौदा' निकल चुका है वो हंगामे-नाज़ से6
पर मुझसे है अदा का वही रंग अब तलक
'''शब्दार्थ:
1. शर्म 2. पत्थर 3. व्यर्थ 4. वहाँ 5. दूरी की एक इकाई 6. नखरे के दौर से
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