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00:55, 7 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=केशव
|संग्रह=|संग्रह=धरती होने का सुख / केशव
}}
<poem>
धूप में नहाते हैं
बच्चे
धूप में
काग़ज़ की नावें चलाते हैं
बच्चे
धूप में
पतंगों की तरह उड़ना चाहते हैं
बच्चे
धूप में बिलखते हैं
बच्चे भरी दोपहरी में
घर से निकलकर
आखिर कहाँ जाते हैं
बच्चे।
</poem>