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12:30, 7 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=केशव
|संग्रह=|संग्रह=धरती होने का सुख / केशव
}}
<poem>
उनकी हंसी
छिनाल
उनकी आवाज़
न इस पार
न उस पार
उनका सुख है लोग
लोग ही लोग
उनका दुख
खाली पंडाल
उनकी दिनचर्या
बहरी
पर इच्छाएं वाचाल
उनका सपना बस एक कुर्सी
उनके पाँव
एक छाती पर
दूसरा
इतिहास में
उनका तन भूख़ा
मन भी
आत्मा तक भूखी
देने के लिए वादे
पाने के लिए
छोटी पड़ती दिन-ब-दिन
यह धरती भी।
</poem>