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उनका सपना / केशव
Kavita Kosh से
उनकी हंसी
छिनाल
उनकी आवाज़
न इस पार
न उस पार
उनका सुख है लोग
लोग ही लोग
उनका दुख
खाली पंडाल
उनकी दिनचर्या
बहरी
पर इच्छाएं वाचाल
उनका सपना बस एक कुर्सी
उनके पाँव
एक छाती पर
दूसरा
इतिहास में
उनका तन भूख़ा
मन भी
आत्मा तक भूखी
देने के लिए वादे
पाने के लिए
छोटी पड़ती दिन-ब-दिन
यह धरती भी।